मन के मंदिर में भी देखो

 


मन के मंदिर में भी देखो मूरत है मेरे यार की, 

"रति" ईर्ष्या करें देखकर सूरत मेरे यार की।


पूजा जिसको खुदा मानकर

माँगा जिसको दुआ जानकर, भूल सके न जिसको पलभर

अपनी साँसें जानकर ।

दिया छोड़ सॉसों ने दामन हमको मुर्दा जानकर

मंदिर के..

देखा उसको पहली बार

जी लिए पल में सौ सौ साल,

ले गयी चैन वो अपने साथ

बेचैनी दी सालों साल।

जीता जहाँ से हमनें जिसको बस एक खुद को हारकर

जिसकी एक झलक के आगे कीमत क्या संसार की

मन के..

तूफानों से जिसे बचाया हमने अपने हाथों से

 कभी हसांया कभी रुलाया उसको अपनी बातों से, 

छूट नज़ारे जाते थे जब खेलती वो बरसातों से 

न जाने क्यों उसने खेला खेल मेरे जज्बातों से। 

उसी दिए ने जल दी सारी रेखाएं मेरे हाथ की मन के.

उसके बिन एक पल भी अब तो लगता जैसे साल हैं। 

समझ सको तो तुम भी समझो कैसा मेरा हाल है। 

ज्यों बिन गंध गुलाब हो कोई, बस वो ही मेरा हाल है। 

मन के मंदिर में भी देखो मूरत है मेरे यार की 

"रति" ईर्ष्या करें देखकर सूरत मेरे यार की

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