कोई टुकड़ा टुकड़ा जीता
कोई टुकड़ा टुकड़ा मरता,
कोई फरियादें है करता
कोई जा के सजदा करता।
आँखों में पानी भर के
खुशियां बेगानी कर के,
जीता है हर पल कोई
कोई तो हर पल है मरता ।
कोई टुकड़ा.....
कोई टुकड़ा.....
ज़र्मी के बिस्तर पे सोता
बिना आंसू के वो रोता,
दिखा क्यों तुझे न अब तक वो
जो सीने में होता रहता।
कोई टुकड़ा....
कोई टुकड़ा....
कहीं हर पल सूरज उगता
कहीं पर चाँद नहीं दिखता,
कोई बिन पाए सब खोता।
कोई बिन खोये सब पाता
कोई टुकड़ा।
कोई टुकड़ा।
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