रीति रिवाजों और रिश्तों के बंधन में बंध जाना तुमबना किसी को लेना अपना, उसी की फिर बन जाना तुम,
सारे दिन की चहल पहल से जब तुम थक जाओगी
बना के बिस्तर वाहों का उनमें घुलकर सो जाना तुम ।
गर दिखे ख्वाव में दुनियां मेरी तो फिर तो फिर
मर्यादा की डोर समेटे अपने घर आ जाना तुम
मर्यादा की डोर।....
कोमल कोमल पैरों से जब तुम चलकर आओगी,पायल खनक तो छोड़ेगी तुम उपवन महकाओगी।फैलेगी जब खुशबू और खनक वो पायल की,अपनी खुशियों को अपने में फिर तुम छिपा न पाओगी ॥जब दे कोई आवाज तुम्हें रुक जानें कोतो फिर तो फिर वहीं पे थम जाना तुममर्यादा की डोर।.....तुम हो सूर्यमुखी अपने भानु के संग रहनातुम हो खुद में पूरी "धुन" पर इनके रागों में बहना,वही तुम्हारे व्रत हैं और वही तुम्हारी पूजाबन जाना खुद आंसू पर उनकी आँखों में रहना।भले यहाँ हो खुशी तुम्हारी वहीं पे फिर रहना होगा.उनकी खुशियों की खातिर दर्द तुम्हें सहना होगा ।मिटेगी फिर तस्वीर मेरी नैनों से बहते पानीन याद तुम्हे आएंगे हम किस्से और कहानी मेंभुला के फिर दुनियां मेरी अपने में रम जाना तुममर्यादा की डोर।.....
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